बरसो रे, मेघा बरसो
मीठा है कोसा है, बारिश का बोसा है
जल-थल-चल-चल-चल-चल बहता चल
बरसो रे…
गीली गीली माटी, गीली माटी के
चल घरौंदे बनायेंगे रे
हरी भरी अंबी, अंबी की डाली
मिल के झूले झुलायेंगे रे
धन बैजू गजनी, हल जोते सबने
बैलों की घंटी बजी, और ताल लगे भरने
रे तैर के चली, मैं तो पार चली
पार वाले पर ले किनारे चली
बरसो रे…
काली काली रातें, काली रातों में
ये बदरवा बरस जायेगा
गली गली मुझको, मेघा ढूँढेगा
और गरज के पलट जायेगा
घर आँगन अंगना, और पानी का झरना
भूल न जाना मुझे, सब पूछेंगे वरना
रे बह के चली, मैं तो बह के चली
रे कहती चली, मैं तो कहके चली
बरसो रे…