फ़लक तक चल साथ मेरे
फ़लक तक चल साथ चल
ये बादल की चादर
ये तारों के आँचल
में छुप जाएँ हम पल दो पल
देखो कहाँ आ गए हम सनम साथ चलते
जहाँ दिन की बाहो में रातों के साए हैं ढलते
चल वो चौबारे ढूंढे
जिन में चाहत की बूँदे
सच कर दे सपनो को सभी
आँखों को मीचे मीचे
मैं तेरे पीछे पीछे
चल दूँ जो कह दे तू अभी
बहारों के छत हो
दुआओं के खत हो
पढ़ते रहे ये ग़ज़ल
देखा नहीं मैंने पहले कभी ये नज़ारा
बदला हुआ सा लगे मुझको आलम ये सारा
सूरज को हुई हरारत
रातों को करे शरारत
बैठा है खिड़की पे तेरी
हा इस बात पे चाँद भी बिघडा
कतरा कतरा वो पिघला
भर आया आँखों में मेरी
तो सूरज बुझा दूँ
तुझे मैं सजा दूँ
सवेरा हो तुझसे ही कल