कोई दिया जले कहीं
आवाज़ दे कोई
रात कटती नहीं
दर्द घटते नहीं
कोई दिया जले कहीं
सुखी हुई टहनी से
कितनी रातें तोड़ी हैं
कितने सारे दिन पीसे हैं
कितनी शामें जोड़ी हैं
जुड़ते हुए जब दो लम्हे आखिर मिले कहीं
शायद मिलेंगे वहीं
जानेवाले जाते जाते
इतना कह के लौट गए
फिर जब कोई दिन टूटेगा
फिर जब कोई रात गिरे
पलकों पे जब कोई आँसू मचले, गिरे नहीं
शायद मिलेंगे वहीं