आयो कहाँ से घनश्याम
रैना बिताई किस धाम
रात की जागी रे अँखियाँ हैं तोरी
हो रही गली गली जिया की चोरी
हो नहीं जाना बदनाम
सजधज तुमरी का कहूँ रसिया
ऐसे लगे तेरे हाथों में बँसिया
जैसे कटारी लियो थाम
मैं ना कहूँ कछु मोसे ना रूठो
तुम खुद अपने जियरा से पूँछो
बीती कहाँ पे कल शाम